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Maati ka beta | Independence Day, Hindi, Poem


स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1960 (स्त्रोत )


खून   के   बदले  जो  आज़ादी  का  सौदा  करते  थे ,
अपने  ही  रक्त  की  स्याही  में  नौजवान  दस्तखत  करते  थे ..
उस  आज़ाद  हिंद  फ़ौज  के  पन्नों में , लहू  से  लिखा  है  मेरा  नाम  कहीं ..
दुनिया  को  मै  याद  नहीं , मेरी  कोई  पहचान  नहीं ..


दिल  में  हो  आग , फिर  क्या  भूख  क्या  प्यास ,
मातृप्रेम  का  कुछ  था  अलग  अंदाज़ ..
एक  सौ  सौलह  दिन  तक  रखा  उसने  उपवास ,
शहीद  होकर  भी  कर  गया  युद्ध  आग़ाज़ ..

दिल  में  आज  भी  है  सुलगता उसकी  राख़ का  अंगार ,
जलती  रहे  हर  पल  इंक़लाब की  मशाल ..
मै  गुनगुनाता  रहा  उस  दीवाने  की  पुकार ,
इस  उम्मीद  से  की  होगा  देश  ‘मेरा ’ विशाल  खुशाल ..

हाथ  में  लेकर  लाठी  जब  वो  आगे  बड़ते  थे ,
जन  सैलाब  उमड़ते  थे  कारवां  नए  बनते  थे ..
दांडी  तक  वो  दो  सौ  चालीस  मील  मै  भी  दौड़ा  था ,
देश  का  नमक  खाने  वालों   नमक  कानून  हमने  तोडा  था ..

इतिहास  के  पन्नों  पर ,
मेरा  कहीं  भी  नाम  नहीं ..
मैं  बेटा  इस  माटी  का ,
ये  माटी  है  पहचान  मेरी ..


हम केवल उन्ही चेहरों को जानते हैं जिन्हें हमने किताबो में देखा है। परन्तु स्वतंत्र भारत के पीछे ऐसे  हज़ारो लाखो अनजाने चेहरे हैं जिन्होंने नि:स्वार्थ रूप से अपना सम्पूर्ण जीवन ही मातृभूमि के चरणकमलो में समर्पित कर दिया। भारत देश जितना महात्मा गाँधी , भगत सिंह और सुभाष चन्द्र बसु का है उतना ही उन करोड़ो देशप्रेमियों का भी है। उन्ही अनजाने चेहरों को इस कविता के माध्यम से मैं सभी भारतवासियों की ओर से श्रधांजलि अर्पित करता हूँ।



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